सैलाब

मेरे हालात से तेरे हालात का रिश्ता है ऐसा
कि बंद दीदों में जैसे सैलाब जा मिले
लड़खड़ाते ही सही चाहे बेअदबी से
कुछ ऐसे जवाब दो ज़िंदग़ी को काफ़िर
कि ग़म को कोई हिजाब ना मिले
जो छूपा लोगे इसे ये नासुर सा बनेगा
मेरे सबब,मेरी चाहतों में है बस इतना ही
कि आतिश को कोई लिबास ना मिले
वर्ना कहा रोक पाओगे स्वाह होते इसे
न पनाहो न दफ़न करो बस ख़बरदार रहो
कि तिश्नग़ी को कोई जज़्बात ना मिले
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